इस कहानी में हमे किसी को दुख पहुंचाने का कोई इरादा नही है, फिर भी अगर पसंद आए तो Comment & share Please☺️ नींद के स्वरूप जब हमारा जन्म होता है तो सोने कि आदत होती है। रात को जगी तो मां जागकर हम सुलाती है। जब हम साल भर के हो जाते है, मां हमें लोरी गाकर सुलाती है । जब हम 2 3 साल के हो जाते है, मां हमें कहानी सुना के सुलाती है। आपको याद होगा गर्मियों में मां हमें चंदा मामा का लोरी सुनते थे। जब हम पढ़ने लायक हो जाते है तो हमें हॉस्टल में एडमिट किया जाता है, वहां हमें लोरी सुनने वाला कोई नहीं होता, प्यार से सुलाने वाला कोई नहीं होता, वहां हमारा हाल चाल पूछा तो जाता है पर उपचार करने वाला कोई नहीं होता। क्योंकि मा के हथो जो उपचार होता है वो कोई डॉक्टर भी नहीं कर सकता। फिर हमें आता है बेचैनी का नींद। 10th 12th पास हो जाते है फिर आता है एक और नया नींद का दौर, मां के पास बीते वो पल, जन्नत से कम नही होते, नींद आती है इतनी अच्छी, और कोई मन्नत नही होते।। फिर होता है पसंद, इजहार और प्यार जिस रात अच्छे से बात हो गई तो चैन की नींद नहीं हुई तो सोचते सोचते नींद आ जाती है। आगे क्या नौकरी की