इस कहानी में हमे किसी को दुख पहुंचाने का कोई इरादा नही है,
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नींद के स्वरूप
जब हमारा जन्म होता है तो सोने कि आदत होती है। रात को जगी तो मां जागकर हम सुलाती है। जब हम साल भर के हो जाते है, मां हमें लोरी गाकर सुलाती है ।
जब हम 2 3 साल के हो जाते है, मां हमें कहानी सुना के सुलाती है।
आपको याद होगा गर्मियों में मां हमें चंदा मामा का लोरी सुनते थे।
जब हम पढ़ने लायक हो जाते है तो हमें हॉस्टल में एडमिट किया जाता है,
वहां हमें लोरी सुनने वाला कोई नहीं होता, प्यार से सुलाने वाला कोई नहीं होता, वहां हमारा हाल चाल पूछा तो जाता है पर उपचार करने वाला कोई नहीं होता। क्योंकि मा के हथो जो उपचार होता है वो कोई डॉक्टर भी नहीं कर सकता।
फिर
हमें आता है बेचैनी का नींद।
10th 12th पास हो जाते है फिर आता है एक और नया नींद का दौर,
मां के पास बीते वो पल, जन्नत से कम नही होते,
नींद आती है इतनी अच्छी, और कोई मन्नत नही होते।।
फिर होता है पसंद, इजहार और प्यार
जिस रात अच्छे से बात हो गई तो चैन की नींद
नहीं हुई तो सोचते सोचते नींद आ जाती है।
आगे क्या
नौकरी की तलाश -
नौकरी खोजते खोजते इंसान इतना थक जाता है। और उसे भी पता नहीं चलता है कि कब सो जाता है
इसे कहते है थकान कि नींद।
नौकरी मिली तो शादी,
शादी के समय आधी नींद खत्म,
मतलब होती है आधी नींद
कुछ दिन बाद सुकून कि नींद आती है,
यहां से हमारा नींद भी reverse ले लेता है।
बच्चे आए तो आधी नींद,
काम ज्यादा हो जाता है, बच्चे संभालो घर संभालो,
और फिर आता है थकान कि नींद।
फिर बच्चे की पढ़ाई लिखाई उनकी शादी करानी
और तो और
जो दिन अच्छा बिता चैन की नींद
वरना टेंशन से दिमाग खराब हुआ रहता है नींद तो आनी ही है।
बच्चे की शादी हो जाने पर बहू घर आती है शाश की मदद करती है,
टेंशन थोड़ा कम होता है अच्छी नींद आती है।
घर में एक ऐसा दिन भी आता है जब साश बहू में लड़ाई हो जाए
फिर वही बेचैनी
और जब वृद्ध हो जाते है तो थोड़ा पालन पोषण होता है,
लोरी के जगह पर थोड़ा हिम्मत रखने का उपदेश दिया जाता है।
यही वो दौर होता है जब वो कहानी सुनाते सुनाते सोते है।
और
अंत में सोने का आदत लग है और हमेशा के लिए सो जाता है।
Thankyou
So much .......❣️
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